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Swami Avdheshanand

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Official account of Swami Avdheshanand Giri Acharya Mahamandleshwar Juna Akhara. A Great Motivator Renowned Scholar, Excellent Orator.Managed by dedicated team.

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जीवन की सिद्धि में आहार की बड़ी भूमिका है, अतः उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रकृति के निकट जाएँ । ऋतुओं के अनुकूल प्राकृतिक आहार लें। प्रकृति नित्य परिवर्तनशील है, इसलिए मौसम और जलवायु में परिवर्तन का प्रभाव फल-फूल एवं वनस्पतियों में दृष्टिगोचर होता है। जलवायु परिवर्तन के साथ ही

जीवन की सिद्धि में आहार की बड़ी भूमिका है, अतः उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रकृति के निकट जाएँ । ऋतुओं के अनुकूल प्राकृतिक आहार लें। प्रकृति नित्य परिवर्तनशील है, इसलिए मौसम और जलवायु में परिवर्तन का प्रभाव फल-फूल एवं वनस्पतियों में दृष्टिगोचर होता है। जलवायु परिवर्तन के साथ ही
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अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं।
तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः।
तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥

शुभ कर्म, आध्यात्मिक विचार एवं भगवत्कृपा के आश्रय में रहकर अनंत-सामर्थ्य, शाश्वत आह्लाद एवं अक्षय ऊर्जा के साथ जीवन की दिव्य संभावनाओं

अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥ उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥ शुभ कर्म, आध्यात्मिक विचार एवं भगवत्कृपा के आश्रय में रहकर अनंत-सामर्थ्य, शाश्वत आह्लाद एवं अक्षय ऊर्जा के साथ जीवन की दिव्य संभावनाओं
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सनातन संस्कृति, संस्कार एवं जीवन मूल्यों की अभिरक्षा के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले सामाजिक सशक्तीकरण के पुरोधा एवं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के राजनैतिक मार्गदर्शक स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले जी की जन्म जयंती पर सादर स्मरण ।

Respectful remembrance on the birth anniversary of

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हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥

अपने समस्त सुखों का त्याग करते हुए स्वधर्म एवं राष्ट्र धर्म का प्राणपण से पालन करने वाले भारत के महान योद्धा निश्चित ही प्रणम्य हैं । सनातन वैदिक हिन्दू धर्म संस्कृति एवं उच्चतम

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥ अपने समस्त सुखों का त्याग करते हुए स्वधर्म एवं राष्ट्र धर्म का प्राणपण से पालन करने वाले भारत के महान योद्धा निश्चित ही प्रणम्य हैं । सनातन वैदिक हिन्दू धर्म संस्कृति एवं उच्चतम
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अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्।
एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोन्यथा।।

आध्यात्मिक विद्या सब प्रकार की विद्याओं में श्रेष्ठ है। आध्यात्मिक बल विषम परिस्थितियों में सहायक और आह्लाद प्रदाता है। अध्यात्म हमारे स्वभाव की यात्रा है, जिसका फलादेश है-अज्ञान जनित विकारों

अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्। एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोन्यथा।। आध्यात्मिक विद्या सब प्रकार की विद्याओं में श्रेष्ठ है। आध्यात्मिक बल विषम परिस्थितियों में सहायक और आह्लाद प्रदाता है। अध्यात्म हमारे स्वभाव की यात्रा है, जिसका फलादेश है-अज्ञान जनित विकारों
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सेवा साधन नहीं अपितु समस्त आध्यात्मिक साधनों की फालश्रुति है।
विश्व में जहाँ कहीं भी सेवा और परमार्थ के कार्य हों उन्हे प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। रेडक्रास संस्था विगत कई वर्षों से युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं एवं आपातकालीन सेवाओं के लिए वैश्विक स्तर पर उल्लेखनीय कार्य कर रही

सेवा साधन नहीं अपितु समस्त आध्यात्मिक साधनों की फालश्रुति है। विश्व में जहाँ कहीं भी सेवा और परमार्थ के कार्य हों उन्हे प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। रेडक्रास संस्था विगत कई वर्षों से युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं एवं आपातकालीन सेवाओं के लिए वैश्विक स्तर पर उल्लेखनीय कार्य कर रही
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ॐ इदं नम ऋषिभ्यः पूर्वजेभ्यः पूर्वेभ्यः पथिकृद्भ्यः ।

भगवान् भाष्यकार भगवद्पाद श्री आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा विरचित ग्रंथों और आर्षविद्या की गूढ़ संस्कृतनिष्ठ भाषा का आंग्ल भाषा में अनुवाद कर उसे वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाने वाले भारत की महान आध्यात्मिक विभूति अनन्तश्री

ॐ इदं नम ऋषिभ्यः पूर्वजेभ्यः पूर्वेभ्यः पथिकृद्भ्यः । भगवान् भाष्यकार भगवद्पाद श्री आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा विरचित ग्रंथों और आर्षविद्या की गूढ़ संस्कृतनिष्ठ भाषा का आंग्ल भाषा में अनुवाद कर उसे वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाने वाले भारत की महान आध्यात्मिक विभूति अनन्तश्री
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जीवन का प्रत्येक सूर्योदय हमें हमारे लक्ष्य और संकल्पनाओं की संपूर्ति के नवीन अवसर प्रदान करता है | इसलिए नवसृजन , नवोन्मेषी विचार एवं नूतन अवसरों का स्वागत करें । भय,कुंठा, तनाव एवं असुरक्षा के भाव हमारे मन की दुर्बलताएँ हैं। इनसे अप्रभावी रहकर ही जीवन की श्रेष्ठ संभावनाओं को

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परतन्त्र भारत के नैराश्य भरे कालखण्ड में साहित्यिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना के उन्नायक, नोबेल पुरस्कार से सम्मानित विश्वविख्यात कवि श्रीमान रवींद्रनाथ टैगोर जी की जन्मजयंती पर सादर स्मरण। राष्ट्र के समग्र उत्थान हेतु आपके द्वारा किए गए कार्य सदैव स्मरण किए जायेंगे।

परतन्त्र भारत के नैराश्य भरे कालखण्ड में साहित्यिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना के उन्नायक, नोबेल पुरस्कार से सम्मानित विश्वविख्यात कवि श्रीमान रवींद्रनाथ टैगोर जी की जन्मजयंती पर सादर स्मरण। राष्ट्र के समग्र उत्थान हेतु आपके द्वारा किए गए कार्य सदैव स्मरण किए जायेंगे।
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एतान्वान्सांख्ययोगाभ्यां सर्वधर्मपरिनिष्ठया।
जन्मलाभ ततः पुंसां अन्ते नारायणस्मृतिः।।

ईश्वर का साक्षात्कार जीवन का परम पुरुषार्थ है। वस्तुत: हानि-लाभ, जय-पराजय, सुख-दुःख,मान-अपमान एवं विविध द्वन्द ये सब मन की उपज है । सत्संग-स्वाध्याय, गुरुजनों के आशीष अनुग्रह एवम् विवेक

एतान्वान्सांख्ययोगाभ्यां सर्वधर्मपरिनिष्ठया। जन्मलाभ ततः पुंसां अन्ते नारायणस्मृतिः।। ईश्वर का साक्षात्कार जीवन का परम पुरुषार्थ है। वस्तुत: हानि-लाभ, जय-पराजय, सुख-दुःख,मान-अपमान एवं विविध द्वन्द ये सब मन की उपज है । सत्संग-स्वाध्याय, गुरुजनों के आशीष अनुग्रह एवम् विवेक
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स्वभावेन हि तुष्यन्ति देवाः सत्पुरुषाः पिता ।
ज्ञातयः स्नानपानाभ्यां वाक्यदानेन पण्डिताः ॥

पारिवारिक स्नेह, त्याग- भावना समर्पण और स्वजनों का अंकुश अनुशासन चिरकाल से व्यक्ति परिवार और समाज में एकता सामंजस्य और राष्ट्र की चौमुखी प्रगति का आधार सिद्ध हुआ है ।जहाँ पारिवारिक मूल्य

स्वभावेन हि तुष्यन्ति देवाः सत्पुरुषाः पिता । ज्ञातयः स्नानपानाभ्यां वाक्यदानेन पण्डिताः ॥ पारिवारिक स्नेह, त्याग- भावना समर्पण और स्वजनों का अंकुश अनुशासन चिरकाल से व्यक्ति परिवार और समाज में एकता सामंजस्य और राष्ट्र की चौमुखी प्रगति का आधार सिद्ध हुआ है ।जहाँ पारिवारिक मूल्य
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यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति । दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ।। “शुक्लयजुर्वेद”

ध्येयनिष्ठ एवं पुरुषार्थी साधकों के समक्ष कोई भी चुनौती उनके उत्साह और प्रगति को बाधित नही करती । जिन्होंने बड़े लक्ष्य निर्धारित कर लिए हैं, उनके जीवन में

यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति । दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ।। “शुक्लयजुर्वेद” ध्येयनिष्ठ एवं पुरुषार्थी साधकों के समक्ष कोई भी चुनौती उनके उत्साह और प्रगति को बाधित नही करती । जिन्होंने बड़े लक्ष्य निर्धारित कर लिए हैं, उनके जीवन में
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सहज और निर्दोष हँसी मनुष्य की सहृदयता और विराट व्यक्तित्व की संसूचक हैं।हँसना- हँसाना न केवल तनाव मुक्ति और स्वास्थ्य संवर्धन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, अपितु यह संबंधों को सहेजने की एक कला भी है। जहाँ मनुष्य की शक्ति और संपदा भी प्रभावहीन हो जाती है वहाँ मृदु वचन और सहज मुस्कान

सहज और निर्दोष हँसी मनुष्य की सहृदयता और विराट व्यक्तित्व की संसूचक हैं।हँसना- हँसाना न केवल तनाव मुक्ति और स्वास्थ्य संवर्धन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, अपितु यह संबंधों को सहेजने की एक कला भी है। जहाँ मनुष्य की शक्ति और संपदा भी प्रभावहीन हो जाती है वहाँ मृदु वचन और सहज मुस्कान
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आधुनिक युग में उन्नत वैज्ञानिक आविष्कारों के बाद भी वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष लाखों लोग विभिन्न कारणों से अग्निदाह का शिकार होते हैं। दुर्भाग्य से विगत पांच वर्षों में अकेले भारत वर्ष में लगभग कई हजार से अधिक लोग आग में जिंदा जलकर मारे जा चुके हैं। वैश्विक स्तर पर अग्निदाह की

आधुनिक युग में उन्नत वैज्ञानिक आविष्कारों के बाद भी वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष लाखों लोग विभिन्न कारणों से अग्निदाह का शिकार होते हैं। दुर्भाग्य से विगत पांच वर्षों में अकेले भारत वर्ष में लगभग कई हजार से अधिक लोग आग में जिंदा जलकर मारे जा चुके हैं। वैश्विक स्तर पर अग्निदाह की
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सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो ब्रजाधिपः।
तस्मात्सर्वात्मना नित्यं श्रीकृष्णः शरणं मम।|

पूर्णपुरुषोत्तम परात्पर ब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण सर्वशक्तिमान तथा सर्वव्यापक होने के साथ जगत् के निमित्तकारण तथा उपादान कारण भी हैं। ब्रह्मसूत्र पर अणुभाष्य एवं श्रीमद्भागवत पर सुबोधिनी टीका जैसे

सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो ब्रजाधिपः। तस्मात्सर्वात्मना नित्यं श्रीकृष्णः शरणं मम।| पूर्णपुरुषोत्तम परात्पर ब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण सर्वशक्तिमान तथा सर्वव्यापक होने के साथ जगत् के निमित्तकारण तथा उपादान कारण भी हैं। ब्रह्मसूत्र पर अणुभाष्य एवं श्रीमद्भागवत पर सुबोधिनी टीका जैसे
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यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

अति स्वच्छंदता, प्राकृतिक नियमों की अवहेलना एवं सदाचार के अभाव के कारण समाज में अनेक विकृतियाँ हैं । स्वस्थ एवं निरापद जीवन का आधार है- आत्मसंयम।
संयम सदाचार एवं मर्यादाओं के अनुपालन से न केवल अनेक

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥ अति स्वच्छंदता, प्राकृतिक नियमों की अवहेलना एवं सदाचार के अभाव के कारण समाज में अनेक विकृतियाँ हैं । स्वस्थ एवं निरापद जीवन का आधार है- आत्मसंयम। संयम सदाचार एवं मर्यादाओं के अनुपालन से न केवल अनेक
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भारत में स्वतंत्रता के पूर्व और अनंतर राष्ट्रीय भावना के विकास एवं सांस्कृतिक आध्यात्मिक मूल्यों के संरक्षण में प्रेस ने उल्लेखनीय भूमिका का निर्वहन किया है।वर्तमान में भी भारतीय जनमानस में पत्रकारिता को लेकर वही भावना जीवंत है। प्रेस की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता सुनिश्चित करने

भारत में स्वतंत्रता के पूर्व और अनंतर राष्ट्रीय भावना के विकास एवं सांस्कृतिक आध्यात्मिक मूल्यों के संरक्षण में प्रेस ने उल्लेखनीय भूमिका का निर्वहन किया है।वर्तमान में भी भारतीय जनमानस में पत्रकारिता को लेकर वही भावना जीवंत है। प्रेस की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता सुनिश्चित करने
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किसी भी बड़े लक्ष्य की संप्राप्ति छोटे-छोटे प्रयत्नों से होती है अत: निरंतर गतिमान रहें। आरंभ करना सदा ही कठिन और चुनौतीपूर्ण रहा है। जैसे ही साधक जीवन पथ की बाधाओं से प्रभावित होकर श्रम का नियोजन बंद कर देता है उसी क्षण उसकी जीवन यात्रा संकुचित हो जाती है। अतः शुभ एवं यथार्थपरक

किसी भी बड़े लक्ष्य की संप्राप्ति छोटे-छोटे प्रयत्नों से होती है अत: निरंतर गतिमान रहें। आरंभ करना सदा ही कठिन और चुनौतीपूर्ण रहा है। जैसे ही साधक जीवन पथ की बाधाओं से प्रभावित होकर श्रम का नियोजन बंद कर देता है उसी क्षण उसकी जीवन यात्रा संकुचित हो जाती है। अतः शुभ एवं यथार्थपरक
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अपने अंतस् को शुभ विचारों से भावित करते रहें। वस्तुत: आध्यात्मिक विचारों के अभाव में ही मनुष्य के जीवन में अल्पता, न्यूनता, हीनता अथवा अवसाद आदि नकारात्मक प्रवृत्तियाँ दृष्टिगोचर होती हैं । हमें यह समझना आवश्यक है कि शान्ति और संपन्नता का मूल भौतिकीय उत्कर्ष नही अपितु सद्वविचार

अपने अंतस् को शुभ विचारों से भावित करते रहें। वस्तुत: आध्यात्मिक विचारों के अभाव में ही मनुष्य के जीवन में अल्पता, न्यूनता, हीनता अथवा अवसाद आदि नकारात्मक प्रवृत्तियाँ दृष्टिगोचर होती हैं । हमें यह समझना आवश्यक है कि शान्ति और संपन्नता का मूल भौतिकीय उत्कर्ष नही अपितु सद्वविचार
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अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।

धरती पर वृक्षों के अनेक उपकार हैं । वृक्षों से हमें प्राण, पवन, प्रकाश और विविध प्रकार की ऊर्जा निरन्तर प्राप्त होती है । वृक्ष पूरे जीवन मे गोंद, छाल, छाया, वत्कल ,हरीतिमा सुगंध मकरंद ही नही देते अपितु वृक्षों से

अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम् न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्। धरती पर वृक्षों के अनेक उपकार हैं । वृक्षों से हमें प्राण, पवन, प्रकाश और विविध प्रकार की ऊर्जा निरन्तर प्राप्त होती है । वृक्ष पूरे जीवन मे गोंद, छाल, छाया, वत्कल ,हरीतिमा सुगंध मकरंद ही नही देते अपितु वृक्षों से
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