#FactsAndBeliefsOfJainism
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) को भक्ति की प्रेरणा करने वाले ऋषि कौन थे?
जानने के लिए पढ़िये 'हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता वेद पुराण
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गीता अध्याय 16 श्लोक 8, 9 में कहा गया है कि जो यह मानते हैं कि संसार ईश्वर रहित है वे राक्षसी स्वभाव वाले मनुष्य संसार के नाश के लिए समर्थ हैं।
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आध्यात्मिकता के केवलज्ञान को प्राप्त करने से जीव मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता है। यही प्रमाण कबीर सागर 'ज्ञान स्थिति बोध' अध्याय 26 पृष्ठ 105-144 में मिलता है। इससे यही सिद्ध होता है कि यह गलत धारणा है कि तीर्थंकर भगवान हैं।
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#GodMorningSaturday
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जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) को भक्ति की प्रेरणा करने वाले ऋषि कौन थे?
जानने के लिए पढ़िये 'हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता वेद पुराण'
#noidagbnup16
श्री ऋषभदेव जी जैन धर्म के प्रवर्तक थे वह नेक आत्मा थे।
उनको पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब आकर मिले थे।
परमेश्वर ने उनको ज्ञान दिया कि आपकी साधना मोक्षदायक नहीं है।
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ऋषभ देव ने धार्मिक गुरुओं से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग समझने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने ऋषभदेव को 'ॐ' नाम का जाप और हठ योग करने को कहा। उसके बाद उन्होंने भगवान को प्राप्त करने तथा जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए तपस्या का फैसला किया।
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ऋषभ देव ने धार्मिक गुरुओं से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग समझने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने ऋषभदेव को 'ॐ' नाम का जाप और हठ योग करने को कहा। उसके बाद उन्होंने भगवान को प्राप्त करने तथा जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए तपस्या का फैसला किया।
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ऋषभ देव ने धार्मिक गुरुओं से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग समझने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने ऋषभदेव को 'ॐ' नाम का जाप और हठ योग करने को कहा। उसके बाद उन्होंने भगवान को प्राप्त करने तथा जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए तपस्या का फैसला किया।
#GodNightMonday
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जैन धर्म में माना जाता है कि हठयोग करने से निर्वाण अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जबकि गीता अध्याय 17 श्लोक 5-6, अध्याय 3 श्लोक 6 में हठयोग के लिए मना किया गया है। यानि यह एक मनमाना आचरण है। इससे साधक को लाभ होता है या हानि जानने के लि
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ऋषभ देव ने धार्मिक गुरुओं से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग समझने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने ऋषभदेव को 'ॐ' नाम का जाप और हठ योग करने को कहा। उसके बाद उन्होंने भगवान को प्राप्त करने तथा जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए तपस्या का फैसला किया।
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कबीर परमेश्वर ने बताया है कि मैं जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी को कवि ऋषि नाम से मिला था। उनको आत्म बोध करवाया। जिसके बाद ऋषभदेव ने भक्ति करने का मन तो बना लिया लेकिन मेरा आगे ज्ञान नहीं सुना। जिसका प्रमाण सूक्ष्मवेद में भी दिया गया है:
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पाप कर्म ....
शास्त्र विधि त्यागकर मनमाना आचरण
करके भक्ति कर्म करना, चोरी, परस्त्री को दोष दृष्टि से देखना,
माँस-मदिरा, नशीली वस्तुओं का सेवन, रिश्वत लेना, हिंसा
करना आदि-आदि पाप कर्म हैं।
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Gyaan ganga
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जैन धर्म में 'णोंकार अर्थात ॐ (ओंकार) मंत्र का जाप किया जाता है। आखिर यह मंत्र किस देव का है, क्या इसके जाप से मोक्ष (निर्वाण) प्राप्त हो सकता है?
जानने के लिए पढ़िये 'हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता वेद पुराण'
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The present practice of Jainism is based on the 363 hypocritical beliefs run by Mahavir Jain. Which brings no happiness or speed.
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The present practice of Jainism is based on the 363 hypocritical beliefs run by Mahavir Jain. Which brings no happiness or speed.